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ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा | शाही शायरी
zamin chhoD kar main kidhar jaunga

ग़ज़ल

ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा

आदिल मंसूरी

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ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा
अँधेरों के अंदर उतर जाऊँगा

मिरी पत्तियाँ सारी सूखी हुईं
नए मौसमों में बिखर जाऊँगा

अगर आ गया आइना सामने
तो अपने ही चेहरे से डर जाऊँगा

वो इक आँख जो मेरी अपनी भी है
न आई नज़र तो किधर जाऊँगा

वो इक शख़्स आवाज़ देगा अगर
मैं ख़ाली सड़क पर ठहर जाऊँगा

पलट कर न पाया किसी को अगर
तो अपनी ही आहट से डर जाऊँगा

तिरी ज़ात में साँस ली है सदा
तुझे छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा