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ज़माना ढूँड रहा था किधर गया पानी | शाही शायरी
zamana DhunD raha tha kidhar gaya pani

ग़ज़ल

ज़माना ढूँड रहा था किधर गया पानी

लईक़ आजिज़

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ज़माना ढूँड रहा था किधर गया पानी
किसी का हुक्म हुआ तो ठहर गया पानी

वो धूप थी कि ज़मीं जल के राख हो जाती
बरस के अब के बड़ा काम कर गया पानी

बड़ा ग़ुरूर था अपनी चमक-दमक पे उसे
सुनार ने जो तपाया उतर गया पानी

ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं अब तुम्हारे ज़ेहनों में
तवहहुमात का इस तरह भर गया पानी

शिकस्त-ख़ुर्दा ये क़ौमें तुम्हें मिटा देंगी
अगर तुम्हारी हमिय्यत का मर गया पानी

तरस न आया ग़रीबों के हाल पर 'आजिज़'
सिसकते पौदों के सर से गुज़र गया पानी