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ज़ख़्मों का ब्योपारी है | शाही शायरी
zaKHmon ka byopari hai

ग़ज़ल

ज़ख़्मों का ब्योपारी है

असलम हबीब

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ज़ख़्मों का ब्योपारी है
अच्छी साहू-कारी है

बोझल बोझल पलकों पर
रात अभी तक तारी है

बस इक पत्थर झुग्गी का
शीश-महल पर भारी है

साँप डसे इक उम्र हुई
नश्शा अब तक तारी है

चंद कहीं ये फैशन है
चंद कहीं बद-कारी है

अम्न-ए-आलम की ख़ातिर
जंग युगों से जारी है

मैं ही 'असलम' सच्चा हूँ
झूटी दुनिया सारी है