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ज़ख़्मी न भूल जाएँ मज़े दिल की टीस के | शाही शायरी
zaKHmi na bhul jaen maze dil ki Tis ke

ग़ज़ल

ज़ख़्मी न भूल जाएँ मज़े दिल की टीस के

मुनीर शिकोहाबादी

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ज़ख़्मी न भूल जाएँ मज़े दिल की टीस के
लिल्लाह छिड़के जाओ नमक पीस पीस के

ग़ुस्सा है ज़हर हक़ में दिल-ए-बे-अनीस के
अल्मास पीसते हो अबस दाँत पीस के

मैली निगाह होती है आईना देख कर
नज़्ज़ारे मुद्दतों से हैं रू-ए-नफ़ीस के

ख़ल्वत में ही तसव्वुर-ए-जानाँ नदीम है
तालिब जलीस के हैं न ख़्वाहाँ अनीस के

मअनी न पाए जौहर-ए-शमशीर-ए-यार के
टुकड़े जिगर के हो गए टुकड़े कसीस के

फीका ही ज़ाइक़ा दहन-ए-ज़ख़्म का रहा
क्या बद-मज़ा हुआ मैं नमक पीस पीस के

पीर-ए-फ़लक किसी को न देगा ज़र-ए-नुजूम
यानी दिरम हैं ये कफ़-ए-दस्त-ए-ख़सीस के

कट कट गया मैं देख के मज़मून-ए-क़त्ल को
ऐ बुत क़लम हों हाथ तिरे ख़ुश-नवेस के

दस बीस हर महीने में अबरू नज़र पड़े
इस साल सारे चाँद हुए तीस तीस के

हर्फ़ आ गया शिकस्तगि-ए-दिल के लिखने में
टूटे क़लम हज़ारों शिकस्ता-नवेस के

लिखते हैं छुप के कातिब-ए-आमाल सब का हाल
आमाल-नामा परचा हैं ख़ुफ़या-नवेस के

मक्तूब में इबारत-ए-रंगीं लिखो 'मुनीर'
फ़िक़रे नहीं पसंद दक़ीक़-ओ-सलीस के