ज़ख़्मी दिलों की प्यास सराबों में गुम हुई
जो चश्म वा थी बुझते चराग़ों में गुम हुई
फिरती है उस को ढूँडती अब मौत कू-ब-कू
ये ज़िंदगी तो तेरी निगाहों में गुम हुई
चलना लिखा है अपने मुक़द्दर में उम्र भर
मंज़िल हमारी दर्द की राहों में गुम हुई
हम ढूँडने चले हैं कहाँ पैकर-ए-ख़याल
चश्म-ए-हवस तो गुम-शुदा ख़्वाबों गुम हुई
ख़ुश्बू ने रस्ता छोड़ दिया इंतिज़ार का
मिट्टी में ख़ुफ़्ता बिखरे गुलाबों में गुम हुई
औराक़ के पलटने से कुछ भी नहीं मिला
दानिश हमारी सारी किताबों में गुम हुई
'मामून' ज़ौक़-ए-इश्क़ से मिलता भी क्या हमें
आब-ए-रवाँ की मौज किताबों में गुम हुई
ग़ज़ल
ज़ख़्मी दिलों की प्यास सराबों में गुम हुई
ख़लील मामून