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ज़ख़्म सीने का फिर उभर आया | शाही शायरी
zaKHm sine ka phir ubhar aaya

ग़ज़ल

ज़ख़्म सीने का फिर उभर आया

शायान क़ुरैशी

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ज़ख़्म सीने का फिर उभर आया
याद भर कोई चारा-गर आया

मुझ को बख़्शी ख़ुदा ने इक बेटी
चाँद आँगन में इक उतर आया

ख़ुश नसीबों को घर मिला यारो
मेरे हिस्से में फिर सफ़र आया

तुम तग़य्युर की बात पर ठहरे
मैं सलीबों से बात कर आया

अपनी तहज़ीब को नहीं छोड़ा
ये भी इल्ज़ाम मेरे सर आया

इक कली खिल के फूल में बदली
एक भँवरा भी फूल पर आया

पार उतरा उफ़ुक़ के सूरज तो
फिर मुसाफ़िर को याद घर आया

दोस्ती धूप से ही कर ली जब
राह में तब घना शजर आया

दिल तो 'शायान' टूटना ही था
उस का किरदार भी नज़र आया