ज़ख़्म सब उस को दिखा कर रक़्स कर
एड़ियों तक ख़ूँ बहा कर रक़्स कर
जामा-ए-ख़ाकी पे मुश्त-ए-ख़ाक डाल
ख़ुद को मिट्टी में मिला कर रक़्स कर
इस इबादत की नहीं कोई क़ज़ा
सर को सज्दे से उठा कर रक़्स कर
दूर हट जा साया-ए-मेहराब से
धूप में ख़ुद को जला कर रक़्स कर
भूल जा सब कुछ मगर तस्वीर-ए-यार
अपने सीने से लगा कर रक़्स कर
तोड़ दे सब हल्क़ा-ए-बूद-ओ-नबूद
ज़ुल्फ़ के हल्क़े में जा कर रक़्स कर
उस की चश्म-ए-मस्त को नज़रों में रख
इक ज़रा मस्ती में आ कर रक़्स कर
अपने ही पैरों से अपना-आप रौंद
अपनी हस्ती को मिटा कर रक़्स कर
उस के दरवाज़े पे जा कर दफ़ बजा
उस को खिड़की में बुला कर रक़्स कर
ग़ज़ल
ज़ख़्म सब उस को दिखा कर रक़्स कर
आरिफ़ इमाम