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ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम | शाही शायरी
zaKHm kha ke KHandan hain pairahan-darida hum

ग़ज़ल

ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम

बशीर मुंज़िर

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ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम
ज़िंदगी का नौहा हम वक़्त का क़सीदा हम

जाने तब्अ' के हाथों कौन घाट उतरेंगे
शहर से गुरेज़ाँ हम दश्त से रमीदा हम

ज़िंदगी की आँखों में रात-दिन खटकते हैं
ख़स जो हैं तो ला-सानी ख़ार हैं तो चीदा हम

बर्ग बर्ग ताज़ा है ज़ख़्म ज़ख़्म रिसता है
मौसम-ए-बहाराँ में शाख़-ए-नौ-बुरीदा हम

बज़्म-ए-रंग-ओ-नग़्मा में कौन मुल्तफ़ित होगा
आह-ए-ना-कशीदा हम हर्फ़-ए-ना-शनीदा हम