ज़ख़्म का जो मरहम होते हैं
लोग ऐसे अब कम होते हैं
सूरज डूब के फिर उभरेगा
क्यूँ इतने मातम होते हैं
कमसिन लफ़्ज़ों के सीनों में
गहरे मतलब कम होते हैं
लम्हा लम्हा उम्र ख़ुशी की
सदियाँ सदियाँ ग़म होते हैं
पहले आप समुंदर से
दरिया ख़ुद ही ज़म होते हैं
ग़ज़ल
ज़ख़्म का जो मरहम होते हैं
ज़ाहिद कमाल