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ज़ख़्म-ए-दिल हो अगर हरा रखना | शाही शायरी
zaKHm-e-dil ho agar hara rakhna

ग़ज़ल

ज़ख़्म-ए-दिल हो अगर हरा रखना

रूप साग़र

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ज़ख़्म-ए-दिल हो अगर हरा रखना
हुस्न वालों से फ़ासला रखना

दोस्ती प्यार में बदल जाए
मिलने-जुलने का सिलसिला रखना

ज़िंदगी की दुआएँ यूँ देना
ज़हर के साथ ही दवा रखना

दूर जाना है तो चले जाओ
लौट आने का रास्ता रखना

जीत जाने का शौक़ है तुम को
हारने का भी हौसला रखना

रास्ता जो भी इख़्तियार करो
अपनी मंज़िल को आइना रखना

हर किसी में हुनर नहीं होता
अपने लहजे में इक अदा रखना

चाहते हो जो प्यार अपनो से
दूर रिश्तों से तुम अना रखना

शोर बरपा है दिल के 'सागर' में
आज मुश्किल है ग़म छुपा रखना