EN اردو
ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते | शाही शायरी
zaKHm-e-dil hum dikha nahin sakte

ग़ज़ल

ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते

आसी ग़ाज़ीपुरी

;

ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते
दिल किसी का दुखा नहीं सकते

वो यहाँ तक जो आ नहीं सकते
क्या मुझे भी बुला नहीं सकते

वादा भी है तो है क़यामत का
जिस को हम आज़मा नहीं सकते

आप भी बहर-ए-अश्क हैं गोया
आग दिल की बुझा नहीं सकते

उन से उम्मीद-ए-वस्ल ऐ तौबा
वो तो सूरत दिखा नहीं सकते

उन को घूँघट उठाने में क्या उज़्र
होश में हम जो आ नहीं सकते

माँगते मौत की दुआ लेकिन
हाथ दिल से उठा नहीं सकते

उन को दावा-ए-यूसुफ़ी 'आसी'
ख़्वाब में भी जो आ नहीं सकते