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ज़हर के घूँट पी रहे हैं हम | शाही शायरी
zahr ke ghunT pi rahe hain hum

ग़ज़ल

ज़हर के घूँट पी रहे हैं हम

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

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ज़हर के घूँट पी रहे हैं हम
तेरी नज़रों में जी रहे हैं हम

ख़ूब है सोज़न-ए-मिज़ा भी तिरी
दिल के ज़ख़्मों को सी रहे हैं हम

घर तो घर सर दिए हैं ग़ुर्बत में
दश्त में भी सख़ी रहे हैं हम

शोख़ हों मय-कदे हों महफ़िलें हों
हर जगह मुत्तक़ी रहे हैं हम

तेरे कूचे की गुफ़्तुगू है फ़ुज़ूल
तेरे तो दिल में भी रहे हैं हम

पेश-ए-ख़िदमत हैं कौसर-ओ-तसनीम
कुश्ता-ए-तिश्नगी रहे हैं हम

दे दिए रोटियों समेत शुतुर
मुफ़्लिसी में ग़नी रहे हैं हम

नफ़्स के शर से 'हिल्म' बच के रहो
मुद्दतों से दुखी रहे हैं हम