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ज़हे-ए-कोशिश-ए-कामयाब-ए-मोहब्बत | शाही शायरी
zahe-koshish-e-kaamyab-e-mohabbat

ग़ज़ल

ज़हे-ए-कोशिश-ए-कामयाब-ए-मोहब्बत

शेरी भोपाली

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ज़हे-ए-कोशिश-ए-कामयाब-ए-मोहब्बत
हमेशा रहे हम ख़राब-ए-मोहब्बत

सुकून-ए-मोहब्बत जो मुमकिन नहीं है
बढ़ा दीजिए इज़्तिराब-ए-मोहब्बत

झुकी जा रही हैं वो मासूम नज़रें
दिया जा रहा है जवाब-ए-मोहब्बत

बिला-वास्ता हम से आँखें मिलाओ
रहे दरमियाँ क्यूँ हिजाब-ए-मोहब्बत

तिरी बज़्म जन्नत थी लेकिन करूँ क्या
उठा ले गया इज़्तिराब-ए-मोहब्बत

न तरसा न तरसा मोहब्बत के साक़ी
पिला दे पिला दे शराब-ए-मोहब्बत

हुए हैं वो जिस दिन से नाराज़ 'शेरी'
तरक़्क़ी पे है इज़्तिराब-ए-मोहब्बत