ज़ब्त से दिल नज़ार रहता है
अंदरूनी बुख़ार रहता है
यूँ तो दिल को कभी क़रार न था
अब बहुत बे-क़रार रहता है
क़त्अ उम्मीद हो तो सब्र आए
रोज़ इक इंतिज़ार रहता है
माया-ए-ज़िंदगी सुख़न है 'नज़र'
शेर ही यादगार रहता है
ग़ज़ल
ज़ब्त से दिल नज़ार रहता है
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी