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ज़बाँ पर आह रही लब से लब कभू न मिला | शाही शायरी
zaban par aah rahi lab se lab kabhu na mila

ग़ज़ल

ज़बाँ पर आह रही लब से लब कभू न मिला

मज़ाक़ बदायुनी

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ज़बाँ पर आह रही लब से लब कभू न मिला
तिरी तलब तो मिली क्या हुआ जो तू न मिला

बदल के रूप मिला वज़्अ-ए-आमियाना में
लिबास-ए-ख़ास पहन कर वो ख़ूब-रू न मिला

वो आरज़ू से मिला जब कुछ आरज़ू न रही
न जब तलक गई मिलने की आरज़ू न मिला

पियाला रू-ब-रू आए तो अश्क-ए-ख़ूँ न बहा
शराब-ए-नाब में ऐ चश्म-तर लहू न मिला

सुना दे साक़ी-ए-दौराँ को नाला-हा-ए-'मज़ाक़'
सिपिहर-ए-ख़ाक में मस्तों की हाव-हू न मिला