ज़बाँ है बे-ख़बर और बे-ज़बाँ दिल
कहे किस तरह से राज़-ए-निहाँ दिल
नहिं दुनिया को दिलदारी की आदत
सुनाए किस को अपनी दास्ताँ दिल
न पूछो बे-ठिकानों का ठिकाना
वहीं हम भी थे सरगर्दां जहाँ दिल
कटी है ज़िंदगी सब रंज खाते
कहे क्या उमर भर की दास्ताँ दिल
हमें भी थी कभी मिलने की लज़्ज़त
हमारा भी कभी था नौजवाँ दिल
न बाज़ आऊँगा मैं उल्फ़त से जब तक
उठाए जाएगा जौर-ए-बुताँ दिल
ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-दीं
उठाए बार क्या क्या ना-तवाँ दिल
समझ में ख़ाक आए अक़्ल की बात
गए होश-ओ-ख़िरद आया जहाँ दिल
उन्हें रहम आए तो क्या आए 'परवीं'
वो ला-परवा है मेरा बे-ज़बाँ दिल
ग़ज़ल
ज़बाँ है बे-ख़बर और बे-ज़बाँ दिल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़