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ज़ाइक़े पैदा तबीअ'त में लचक करते हैं | शाही शायरी
zaiqe paida tabiat mein lachak karte hain

ग़ज़ल

ज़ाइक़े पैदा तबीअ'त में लचक करते हैं

मन्नान बिजनोरी

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ज़ाइक़े पैदा तबीअ'त में लचक करते हैं
आ तुझे वाक़िफ़-ए-क़ंद और नमक करते हैं

आओ चलते हैं जहाँ साज़िश-ए-अहबाब न हो
दुश्मनी का ये सफ़र दोस्ती तक करते हैं

वो जो इंसान के ही बस में है उस पर इंसाँ
जाने किस मुँह से शिकायात-ए-फ़लक करते हैं

खुलने ही वाला है बस अंधी अक़ीदत का भरम
हम से कुछ लोग बहुत छान-फटक करते हैं

शिर्क तो ख़्वाब में भी हम से नहीं हो सकता
हम तो या-रब तिरी क़ुदरत पे भी शक करते हैं