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यूसुफ़ ही ज़र-ख़रीदों में फ़िरोज़-बख़्त था | शाही शायरी
yusuf hi zar-KHaridon mein firoz-baKHt tha

ग़ज़ल

यूसुफ़ ही ज़र-ख़रीदों में फ़िरोज़-बख़्त था

शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान

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यूसुफ़ ही ज़र-ख़रीदों में फ़ीरोज़-बख़्त था
क़ीमत में जिस की फिर वही शाही का तख़्त था

मज्लिस में तेरी काविश-ए-मिज़्गाँ के हाथ से
ग़ुंचा नमत हर एक जिगर लख़्त लख़्त था

आँसू तो चीर कर सफ़-ए-मिज़्गाँ निकल गया
लड़का था ख़ुर्द-साल पे दिल का करख़्त था

तुझ पे गुदाज़ दिल है सरापा ऐ शम्अ-रू
जूँ नख़्ल-ए-मोम बाग़ में हर इक दरख़्त था

'ईमान' आफ़रीं है कि उस बद-मिज़ाज से
याराने का निबाहना दुश्वार सख़्त था