EN اردو
यूँही फ़रेब-ए-नज़र की तनाब टूटती है | शाही शायरी
yunhi fareb-e-nazar ki tanab TuTti hai

ग़ज़ल

यूँही फ़रेब-ए-नज़र की तनाब टूटती है

मशकूर हुसैन याद

;

यूँही फ़रेब-ए-नज़र की तनाब टूटती है
क़दम बढ़ाइए मौज-ए-सराब टूटती है

जहाँ चटकता है ग़ुंचा ज़मीन-ए-आलम पर
वहीं पे तिश्नगी-ए-आफ़्ताब टूटती है

नक़ाब उठाओ तो हर शय को पाओगे सालिम
ये काएनात ब-तौर-ए-हिजाब टूटती है

दरून-ए-आब सँवरते हैं सद-हरीम गुहर
कनार-ए-बहर जो मेहराब-ए-आब टूटती है

मुकाशफ़ात के टुकड़े हैं ज़ेहन के औराक़
किताब उतरती नहीं है किताब टूटती है

बस एक आन में खुलता है क़ुफ़्ल दरिया का
बस एक आन में क़ैद-ए-हुबाब टूटती है

हैं इस शिकस्त में ख़ल्क़-ए-जदीद के असरार
हक़ीक़त आज भी हम-राह-ए-ख़्वाब टूटती है

कमाल शय है कमर भी हसीना-ए-ग़म की
जिलौ में ले के कई इंक़लाब टूटती है