यूँ ये बदली काली काली जाएगी
पाक-बाज़ों में भी ढाली जाएगी
तौबा की रिंदों में गुंजाइश कहाँ
जब ये आएगी निकाली जाएगी
कुछ बला-नोश आ गए भट्टी में शैख़
तेरी बोतल आज ख़ाली जाएगी
फूल क्या डालोगे तुर्बत पर मिरी
ख़ाक भी तुम से न डाली जाएगी
आए भी तो वो 'मुबारक' आए क्या
जाने की तम्हीद डाली जाएगी
ग़ज़ल
यूँ ये बदली काली काली जाएगी
मुबारक अज़ीमाबादी