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यूँ तू हर छब वो निराली वो फ़ुसूँ-साज़ कि बस | शाही शायरी
yun tu har chhab wo nirali wo fusun-saz ki bas

ग़ज़ल

यूँ तू हर छब वो निराली वो फ़ुसूँ-साज़ कि बस

ख़ावर रिज़वी

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यूँ तू हर छब वो निराली वो फ़ुसूँ-साज़ कि बस
हाए वो एक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ कि बस

देखने वालो ज़रा रंग का पर्दा तो हटाओ
सीना-ए-गुल पे है ज़ख़्मों का वो अंदाज़ कि बस

दिल के दाग़ों को छुपाया तो उभर आए और
राज़दारी ही ने यूँ खोल दिए राज़ कि बस

हम ने बख़्शी है ज़माने को नज़र और हमें
यूँ ज़माने ने किया है नज़र-अंदाज़ कि बस

रंज-ओ-ग़म इश्क़-ओ-जुनूँ दर्द-ओ-ख़लिश सोज़-ओ-फ़िराक़
ऐसे ऐसे मिले 'ख़ावर' हमें दम-साज़ कि बस