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यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला | शाही शायरी
yun to kahne ko teri rah ka patthar nikla

ग़ज़ल

यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला

बेकल उत्साही

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यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला
तू ने ठोकर जो लगा दी तो मिरा सर निकला

लोग तो जा के समुंदर को जला आए हैं
मैं जिसे फूँक कर आया वो मिरा घर निकला

एक वो शख़्स जो फूलों से भरे था दामन
हर कफ़-ए-गुल में छुपाए हुए ख़ंजर निकला

यूँ तो इल्ज़ाम है तूफ़ाँ पे डुबो देने का
तह में दरिया की मगर नाव का लंगर निकला

घर के घर ख़ाक हुए जल के नदी सूख गई
फिर भी उन आँखों में झाँका तो समुंदर निकला

फ़र्श ता अर्श कोई नाम-ओ-निशाँ मिल न सका
मैं जिसे ढूँढ रहा था मिरे अंदर निकला