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यूँ तो इन आँखों से हम ने ओ बुत कहने को दुनिया देखी | शाही शायरी
yun to in aankhon se humne o but kahne ko duniya dekhi

ग़ज़ल

यूँ तो इन आँखों से हम ने ओ बुत कहने को दुनिया देखी

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

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यूँ तो इन आँखों से हम ने ओ बुत कहने को दुनिया देखी
लेकिन सारी ख़ुदाई भर तेरी सूरत-ए-यकता देखी

खेल गए क्यूँ जाँ पे 'अंजुम' तुम ने अभी क्या दुनिया देखी
मरने लगे ख़ूबान-ए-जहाँ पर तेरी मेरी देखा-देखी

दर्द-ए-जिगर कम था कि नहीं था ये तो बता दम था कि नहीं था
कह तो मरीज़ में कुछ भी देखा नब्ज़ जो तू ने मसीहा देखी

उस को भला क्यूँकर चैन आया दिल को क्या कह कर समझाया
सूरत तेरी जिस ने सितम-गर थाम के अपना कलेजा देखी

वस्ल की शब बरहम ही रहा वो ता-ब-सहर उलझा ही किया वो
बल न गया अबरू से उस की ज़ुल्फ़ भी हम ने सुलझा देखी

वाह-रे-वा ऐ नाला-ए-सोज़ाँ देख ली तेरी ठंडी गर्मी
दिल न पसीजा उस काफ़िर का आग भी तू ने भड़का देखी

उस के दिल से गई न कुदूरत दिल की दिल ही में रह गई हसरत
हम ने झड़ी अश्कों की बरसों इन आँखों से बरसा देखी

एक ज़रा से हश्र पे वाइ'ज़ उस को डराता अल्लाह अल्लाह
जिस ने बुतों की गली में बरसों रोज़-ए-क़यामत बरपा देखी

जैसी ज़ीस्त हमारी गुज़री दुश्मन की भी यूँ न बसर हो
'अंजुम' हज़रत-ए-दिल की बदौलत हम ने मुसीबत क्या क्या देखी