यूँ तो बहुत हसीं है बहार-ए-चमन की याद
दिल पर मगर है नक़्श इसी अंजुमन की याद
हम ख़ुद ग़म-ए-हयात से सीना-फ़िगार हैं
ऐ दोस्तो दिलाओ न उस गुल-बदन की याद
इस इंतिहा-ए-तल्ख़ी-ए-दौराँ के बावजूद
ताज़ा है आज भी किसी शीरीं-दहन की याद
फिर जी में है कि खाइए कोई नया फ़रेब
फिर आ रही है इक बुत-ए-वा'दा-शिकन की याद
रंगीन बादलों के ये टुकड़े ये चाँदनी
अक्सर दिला गए हैं तिरे बाँकपन की याद
उलझन ग़म-ए-हयात की कुछ और बढ़ गई
आई है जब भी ज़ुल्फ़ शिकन-दर-शिकन की याद
'अरशद' दयार-ए-ग़ैर में सब कुछ लुटा के हम
दिल से लगाए फिरते हैं अपने वतन की याद
ग़ज़ल
यूँ तो बहुत हसीं है बहार-ए-चमन की याद
अरशद सिद्दीक़ी