EN اردو
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं | शाही शायरी
yun to aapas mein bigaDte hain KHafa hote hain

ग़ज़ल

यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं

मजरूह सुल्तानपुरी

;

यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं

हैं ज़माने में अजब चीज़ मोहब्बत वाले
दर्द ख़ुद बनते हैं ख़ुद अपनी दवा होते हैं

हाल-ए-दिल मुझ से न पूछो मिरी नज़रें देखो
राज़ दिल के तो निगाहों से अदा होते हैं

मिलने को यूँ तो मिला करती हैं सब से आँखें
दिल के आ जाने के अंदाज़ जुदा होते हैं

ऐसे हंस हंस के न देखा करो सब की जानिब
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं