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यूँ तिरी तलाश में तेरे ख़स्ता-जाँ चले | शाही शायरी
yun teri talash mein tere KHasta-jaan chale

ग़ज़ल

यूँ तिरी तलाश में तेरे ख़स्ता-जाँ चले

फ़ना निज़ामी कानपुरी

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यूँ तिरी तलाश में तेरे ख़स्ता-जाँ चले
जैसे झूम झूम कर गर्द-ए-कारवाँ चले

आज यूँ ही साक़िया जाम-ए-अर्ग़ुवाँ चले
जैसे बज़्म-ए-वाज़ में शैख़ की ज़बाँ चले

राह-ए-ग़म में हम से वो यूँ कशाँ कशाँ चले
जैसे बच के इश्क़ से हुस्न-ए-बद-गुमाँ चले

दिल धड़क धड़क उठा यूँ किसी को देख कर
जिस तरह बहार में नब्ज़-ए-गुलिस्ताँ चले

दिल की अंजुमन से यूँ जा रहा है ज़ब्त-ए-ग़म
जैसे राज़ खोलने कोई राज़-दाँ चले

शैख़ जा रहा है यूँ सू-ए-मय-कदा 'फ़ना'
सर झुका के जिस तरह उम्र-ए-राएगाँ चले