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यूँ तसव्वुर में बसर रात किया करते थे | शाही शायरी
yun tasawwur mein basar raat kiya karte the

ग़ज़ल

यूँ तसव्वुर में बसर रात किया करते थे

शफ़ीक़ जौनपुरी

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यूँ तसव्वुर में बसर रात किया करते थे
लब न खुलते थे मगर बात किया करते थे

हाए वो रात कि सोती थी ख़ुदाई सारी
हम किसी दर पे मुनाजात किया करते थे

याद है बंदगी-ए-अहल-ए-मोहब्बत जिस पर
आप भी फ़ख़्र ओ मबाहात किया करते थे

हम कभी मो'तकिफ़--कुंज-ए-हरम हो कर भी
सज्दा-ए-पीर-ए-ख़राबात किया करते थे

याद करता है उसी अहद-ए-गुज़िश्ता को 'शफ़ीक़'
जब तुम अल्ताफ़ ओ इनायात किया करते थे