यूँ सिसकता मुझे तुम छोड़ न जाओ आओ
आख़िरी वक़्त है ऐ जान-ए-मन आओ आओ
सोहबत-ए-लुत्फ़ में लो नाम न ग़ैरों का कभी
दिल में आशिक़ के न तुम आग लगाओ आओ
बे-बने ही बहुतों को है बिगाड़ा इस ने
अपनी काकुल को बहुत अब न बनाओ आओ
पी भी लो रहने दो कौसर की कहानी ज़ाहिद
ऐसी बे-पर की न यारों से उड़ाओ आओ
'कैफ़ी' छोड़ो भी कहीं कू-ए-बुताँ की ये धुन
चैन आराम दिल-ओ-दीं न गँवाओ आओ

ग़ज़ल
यूँ सिसकता मुझे तुम छोड़ न जाओ आओ
दत्तात्रिया कैफ़ी