EN اردو
यूँ संग-दिल हयात से अहद-ओ-वफ़ा किया | शाही शायरी
yun sang-dil hayat se ahd-o-wafa kiya

ग़ज़ल

यूँ संग-दिल हयात से अहद-ओ-वफ़ा किया

अकबर हैदरी

;

यूँ संग-दिल हयात से अहद-ओ-वफ़ा किया
दीवार दरमियाँ थी मगर ख़ुद को वा किया

मिट्टी का रंग-ओ-नूर से रिश्ता क़दीम था
हर बार ज़िंदगी ने नया तजरबा किया

थे दस्तरस में यूँ तो सब असरार-ए-काएनात
इस उम्र-ए-बेवफ़ा ने मगर ना-रसा किया

हर अजनबी मक़ाम से तन्हा गुज़र गए
अपना ही नक़्श-ए-पा था जिसे रहनुमा किया

चमका दिया लहू ने दिल-ए-तीरा-जिस्म को
इक सैल-ए-नूर था कि रगों में बहा किया

दानिस्ता लुट गया ये समन-ज़ार देखना
फूलों ने निकहतों को सिपुर्द-ए-सबा किया

ये रात रौशनी की तमन्ना में बुझ गई
दिल को ये किस शिकस्त ने बे-मुद्दआ किया

यूँ तो जहाँ तमाम है तूफ़ान-ए-रंग-ओ-नूर
किस आबशार ने हमें रंगीं-नवा किया