यूँ नहीं वो नज़र नहीं आता
हम को दीदार कर नहीं आता
वक़्त अच्छा ज़रूर आता है
पर कभी वक़्त पर नहीं आता
सिर्फ़ रोना ही मुझ को आता है
और कोई हुनर नहीं आता
जो भी जाता है उस के कूचे में
फिर वो बार-ए-दिगर नहीं आता
उस का जल्वा भी इक तमाशा है
नज़र आता है पर नहीं आता
उस ने जाते हुए कहा 'साहिर'!
वक़्त फिर लौट कर नहीं आता

ग़ज़ल
यूँ नहीं वो नज़र नहीं आता
परवेज़ साहिर