यूँ नहीं चैन तो ग़फ़लत का सितम और सही
हम ये समझेंगे कि अफ़्ज़ाइश-ए-ग़म और सही
तुम न आओगे तो क्या जान न जाएगी मिरी
आमद-ओ-रफ़्त नफ़स की कोई दम और सही
कहते हैं ज़ुल्म के ब'अद आह करोगे तो क्या
लश्कर-ए-जौर-ओ-जफ़ा में ये अलम और सही
झुक के मिलने से तुम्हारे मुझे ख़ौफ़ आता है
गो ये ख़म और सही तेग़ का ख़म और सही
अस्ल में जल्वा ये किस का है तू ही कह वाइज़
तेरा रब और सही मेरा सनम और सही
वादा-ए-वस्ल की तकरार पे कहते हैं कि झूट
इन्हीं अहदों में तिरे सर की क़सम और सही
जश्न-ए-जमशेद मयस्सर है कि दिल रखते हैं
जाम ये और सही साग़र-ए-जम और सही
ख़ूब है तुम में जफ़ा की न रहेगी आदत
मेरे बदले भी रक़ीबों पे करम और सही
ग़ज़ल
यूँ नहीं चैन तो ग़फ़लत का सितम और सही
मीर मोहम्मद सुल्तान अाक़िल