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यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला | शाही शायरी
yun na jaan ashk hamein jo gaya bana na mila

ग़ज़ल

यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला

बिमल कृष्ण अश्क

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यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला
दूर ले जाए जो मुझ से कोई ऐसा न मिला

ख़ाली हाथ अब के गुज़रने न दी पेड़ों ने बसंत
पतझड़ आई तो किसी शाख़ पे पत्ता न मिला

अपना साया ही डराता हो तो किस से कहिए
कहिए किस मुँह से कि किस को कोई अपना न मिला

आइना देखने ठहरे तो नज़र काँप गई
और जो अक्स हमीं को हमें ऐसा न मिला

आँख में दरिया लिए फिरते रहे बरसों तक
जिस के सीने में उतर जाता वो सहरा न मिला

दर खुला था तो हवा प्यार लिए आई थी
बंद है तो उसे बाहर कोई अपना न मिला

अपना ही जिस्म बदल जाएगा कब इल्म था 'अश्क'
उठ्ठे तो कल जहाँ सोए थे वो कमरा न मिला