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यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़ | शाही शायरी
yun main sidha gaya wahshat mein bayaban ki taraf

ग़ज़ल

यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़

नज़्म तबा-तबाई

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यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़
हाथ जिस तरह से आता है गरेबाँ की तरफ़

बैठे बैठे दिल-ए-ग़म-गीं को ये क्या लहर आई
उठ के तूफ़ान चला दीदा-ए-गिर्यां की तरफ़

देखना लाला-ए-ख़ुद-रौ का लहकना साक़ी
कोह से दौड़ गई आग बयाबाँ की तरफ़

रो दिया देख के अक्सर मैं बहार-ए-शबनम
हँस दिया देख के अक्सर गुल-ए-ख़ंदाँ की तरफ़

बात छुपती नहीं पड़ती हैं निगाहें सब की
उस के दामन की तरफ़ मेरे गरेबाँ की तरफ़

सैकड़ों दाग़-ए-गुनह धो गए रहमत से तिरी
क्या घटा झूम के आई थी गुलिस्ताँ की तरफ़

चश्म-ए-आईना परेशाँ-नज़री सीख गई
देखता था ये बहुत ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरफ़

सर झुकाए हुए है 'नज़्म' बसान-ए-ख़ामा
सम्त सज्दे की है तेरी ख़त-ए-फ़रमाँ की तरफ़