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यूँ इंतिक़ाम तुझ से फ़स्ल-ए-बहार लेंगे | शाही शायरी
yun intiqam tujhse fasl-e-bahaar lenge

ग़ज़ल

यूँ इंतिक़ाम तुझ से फ़स्ल-ए-बहार लेंगे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

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यूँ इंतिक़ाम तुझ से फ़स्ल-ए-बहार लेंगे
फूलों के सामने हम काँटों के प्यार लेंगे

जाने दो हम को तन्हा तूफ़ान-ए-आरज़ू में
जब डूबने लगेंगे तुम को पुकार लेंगे

जो कुछ था पास अपने दुनिया ने ले लिया है
इक जान रह गई है वो ग़म-गुसार लेंगे

इस दौर-ए-तिश्नगी में क्या मय-कदे को छोड़ें
कुछ दिन गुज़र गए हैं कुछ दिन गुज़ार लेंगे

सय्याद ओ बाग़बाँ के तेवर बता रहे हैं
ये लोग फ़स्ल-ए-गुल के कपड़े उतार लेंगे