यूँ हुआ है चाक मल्बूस-ए-यक़ीं सिलता नहीं
फेंक देना भी है मुश्किल दूसरा मिलता नहीं
ख़्वाब जो देखे न थे उन की सज़ा तो मिल गई
बारहा देखा जिन्हें उन का सिला मिलता नहीं
चल रही है साँस की आँधी उड़ा जाता है दिल
आस का पत्ता है ऐसा डाल से हिलता नहीं
मेरी हिम्मत देखिए इस दश्त में लेता हूँ साँस
नक़्श-ए-पा-ए-बाद भी जिस दश्त में मिलता नहीं
ग़ज़ल
यूँ हुआ है चाक मल्बूस-ए-यक़ीं सिलता नहीं
अमीक़ हनफ़ी