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यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे | शाही शायरी
yun baaten to bahut sari karoge

ग़ज़ल

यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे

सय्यदा अरशिया हक़

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यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे
कहो क्या नाज़-बरदारी करोगे

अभी बातें बहुत प्यारी करोगे
मगर कल क्या वफ़ा-दारी करोगे

सहाफ़ी हो मगर होश्यार रहना
जो घर में बात अख़बारी करोगे

मुझे ये शादमानी खल रही है
कब अपनी याद को तारी करोगे

बदन के एक इक कोने में मेरे
कब अपने लब से ज़र-कारी करोगे

पुराने ज़ाविए से शे'र कह के
कहाँ तक 'हक़' ग़ज़ल-कारी करोगे