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ये ज़र्द चेहरा ये दर्द-ए-पैहम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा | शाही शायरी
ye zard chehra ye dard-e-paiham koi sunega to kya kahega

ग़ज़ल

ये ज़र्द चेहरा ये दर्द-ए-पैहम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा

रईस सिद्दीक़ी

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ये ज़र्द चेहरा ये दर्द-ए-पैहम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
ज़रा से दिल में हज़ार-हा ग़म कोई सुनेगा तो क्या कहेगा

न क़हक़हों के ही सिलसिले हैं न दोस्तों में वो रत-जगे हैं
हर इक से मिलना किया है कम कम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा

बिछड़ने वालों का ग़म न कीजे ख़ुद अपने ऊपर सितम न कीजिए
उदास चेहरा है आँख पुर-नम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा

तू सिर्फ़ अपनी ग़रज़ की ख़ातिर ये जलते दीपक बुझा रहा है
मगर ज़रा ये तो सोच हमदम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा

बलाएँ कितनी भी आएँ सर पर 'रईस' ग़म की न कीजे शोहरत
ये आह-ओ-ज़ारी ये शोर-ए-मातम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा