ये ज़ाद-ए-राह किसी मरहले में रख देना
कोई गुलाब मिरे रास्ते में रख देना
जो बहस चाहिए फ़न पर तो इस्तिआ'रा कोई
किसी रदीफ़ किसी क़ाफ़िए में रख देना
जो नक़्श नक़्श-ए-मोहब्बत था मिट चुका दिल से
चराग़ अब ये किसी ताक़चे में रख देना
गुज़ार लूँगा किसी तरह हिज्र की रातें
कोई कहानी मिरे हाफ़िज़े में रख देना
बग़ौर देखना चेहरों का रंग उतरते हुए
मिरे हुनर की चमक आइने में रख देना
मैं आप-अपना सितारा हूँ अपनी गर्दिश हूँ
मिरा नुजूम मिरे ज़ाइचे में रख देना
मैं देखूँ क्या है मिरा टूटना बिखरना 'रम्ज़'
मुझे उठा के किसी ज़लज़ले में रख देना
ग़ज़ल
ये ज़ाद-ए-राह किसी मरहले में रख देना
मोहम्मद अहमद रम्ज़