ये वो नाले हैं जो लब तक आएँगे
तुम तो क्या हो आसमाँ हिल जाएँगे
इश्क़ में इक पीर-ए-देरीना हूँ मैं
मुझ को नासेह आ के क्या समझाएँगे
हज़रत-ए-दिल सोचते हैं आज कुछ
फिर बला कोई मुक़र्रर लाएँगे
इस तवक़्क़ो' पर उठाते हैं सितम
कुछ तो समझेंगे कभी शरमाएँगे
फेंक देंगे दिल को पहलू चीर कर
आप देखें किस तरह ले जाएँगे
हाल-ए-दिल कहते हैं जो कुछ हो सौ हो
देखिए वो आज क्या फ़रमाएँगे
फिर न चौकेंगे क़यामत तक 'नसीम'
पाँव जिस दिन क़ब्र में फैलाएँगे
ग़ज़ल
ये वो नाले हैं जो लब तक आएँगे
नसीम देहलवी