ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया
क़िस्से कहानियों की सभाएँ भी ले गया
उस ने तमाम शहर को गूँगा बना दिया
मेरे दहन से मेरी सदाएँ भी ले गया
मौसम लगा के ज़ख़्म गया शाख़ शाख़ पर
पेड़ों से फूलों वाली रिदाएँ भी ले गया
सूरज ने डूबते हुए हम को सज़ा ये दी
जिस्मों से रौशनी की क़बाएँ भी ले गया
गुज़रा था अपने शहर से रावन फ़साद का
ज़ालिम मोहब्बतों की कथाएँ भी ले गया
'अंजुम' निराला चोर हमें राह में मिला
जो दिल के साथ हम से दुआएँ भी ले गया
ग़ज़ल
ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया
फ़ारूक़ अंजुम