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ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया | शाही शायरी
ye waqt zindagi ki adaen bhi le gaya

ग़ज़ल

ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया

फ़ारूक़ अंजुम

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ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया
क़िस्से कहानियों की सभाएँ भी ले गया

उस ने तमाम शहर को गूँगा बना दिया
मेरे दहन से मेरी सदाएँ भी ले गया

मौसम लगा के ज़ख़्म गया शाख़ शाख़ पर
पेड़ों से फूलों वाली रिदाएँ भी ले गया

सूरज ने डूबते हुए हम को सज़ा ये दी
जिस्मों से रौशनी की क़बाएँ भी ले गया

गुज़रा था अपने शहर से रावन फ़साद का
ज़ालिम मोहब्बतों की कथाएँ भी ले गया

'अंजुम' निराला चोर हमें राह में मिला
जो दिल के साथ हम से दुआएँ भी ले गया