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ये वफ़ा माँगे है तुम से न जफ़ा माँगे है | शाही शायरी
ye wafa mange hai tum se na jafa mange hai

ग़ज़ल

ये वफ़ा माँगे है तुम से न जफ़ा माँगे है

मुमताज़ मीरज़ा

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ये वफ़ा माँगे है तुम से न जफ़ा माँगे है
मेरी मासूम जबीं एक ख़ुदा माँगे है

दिल का हर ज़ख़्म मिरा दाद-ए-वफ़ा माँगे है
बे-गुनाही मिरी अब तुम से सज़ा माँगे है

दिल-ए-कम-बख़्त को देखो तो ये क्या माँगे है
एक बुत सब से अलग सब से जुदा माँगे है

इक उचटती सी नज़र एक तबस्सुम की किरन
दिल-ए-कम-ज़र्फ़ वफ़ाओं का सिला माँगे है

होश जाते रहे 'मुमताज़' के शायद लोगो
अस्र-ए-हाज़िर में वो जीने की दुआ माँगे है