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ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें | शाही शायरी
ye tamanna hai ki ab aur tamanna na karen

ग़ज़ल

ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें

सलमान अख़्तर

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ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें
शेर कहते रहें चुप चाप तक़ाज़ा न करें

इन बदलते हुए हालात में बेहतर है यही
आईना देखें तो ख़ुद अपने को ढूँडा न करें

तू गुरेज़ाँ रही ऐ ज़िंदगी हम से लेकिन
कैसे मुमकिन है कि हम भी तुझे चाहा न करें

इस नए दौर के लोगों से ये कह दे कोई
दिल के दुखड़ों का सर-ए-आम तमाशा न करें