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ये ताएरों ने जो इक दूसरे के नाम लिए | शाही शायरी
ye taeron ne jo ek dusre ke nam liye

ग़ज़ल

ये ताएरों ने जो इक दूसरे के नाम लिए

नूर मोहम्मद यास

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ये ताएरों ने जो इक दूसरे के नाम लिए
ज़रूर दश्त में आया है कोई दाम लिए

न हो मिज़ाज में ऐसी भी दूर-अँदेशी
कि सुब्ह से कोई निकले चराग़-ए-शाम लिए

कोई इशारा न हो कोई इस्तिआरा न हो
तुम उस का तज़्किरा करना बग़ैर नाम लिए

दयार-ए-ज़ात में एहसास की क़लम-रौ में
फ़क़ीर मिलते हैं शाहों का एहतिशाम लिए

समेट ले न कहीं फिर ज़मीं से चादर-ए-आब
चला है फिर वो समुंदर की सम्त जाम लिए

रहीं-ए-चश्म थी ख़्वाबों की रह-गुज़र फिर भी
न चल सका कोई बे-तोहमत-ए-कयाम लिए

यही कहा कि हैं राज़ों से बा-ख़बर कुछ लोग
पते बताए न उस ने ज़बाँ से नाम लिए

दरून-ए-ज़ात कोई ग़ैर आ नहीं सकता
खड़ी है दर पे अना तेग़-ए-बे-नियाम लिए