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ये सोच बनना है क्या तुझ को क्या बना हुआ है | शाही शायरी
ye soch banna hai kya tujhko kya bana hua hai

ग़ज़ल

ये सोच बनना है क्या तुझ को क्या बना हुआ है

मीर अहमद नवेद

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ये सोच बनना है क्या तुझ को क्या बना हुआ है
ख़ुदा का क्या है कि वो तो ख़ुदा बना हुआ है

दबा सका न सदा उस की तेरी बज़्म का शोर
ख़मोश रह के भी कोई सदा बना हुआ है

मैं चाहता हूँ मसीहा के दिल में भी रख दूँ
वो दर्द मेरे लिए जो दवा बना हुआ है

ये कार-ए-इश्क़ है रख अपने इंहिमाक से काम
न देख बिगड़ा हुआ क्या है क्या बना हुआ है

बसी हुई है मिरे इश्क़ से तिरी ख़ल्वत
तिरा जमाल मिरा आइना बना हुआ है

तुम्हारी बज़्म में हैरत से है कोई तस्वीर
कोई अदब से है साकित दिया बना हुआ है

जो चाहिए है हमें वो हमें मयस्सर है
क़दम उठे हुए हैं रास्ता बना हुआ है