EN اردو
ये शोहरत है कि रुस्वाई मगर हद से ज़ियादा है | शाही शायरी
ye shohrat hai ki ruswai magar had se ziyaada hai

ग़ज़ल

ये शोहरत है कि रुस्वाई मगर हद से ज़ियादा है

ख़ुर्शीद रिज़वी

;

ये शोहरत है कि रुस्वाई मगर हद से ज़ियादा है
मैं ख़ुद इतना नहीं साया मिरे क़द से ज़ियादा है

मिरे दिल की गिरह बातें बनाने से नहीं खुलती
कि मुझ में बस्तगी कुछ क़ुफ़्ल-ए-अबजद से ज़ियादा है

किसी के पास हर्फ़-ए-दिल-नशीं बाक़ी नहीं वर्ना
क़ुबूल अब भी दिलों की ख़ाक में रद से ज़ियादा है

सुवैदा को मिरे निस्बत बहुत है संग-ए-असवद से
मगर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-मोहम्मद से ज़ियादा है

ये जान-ए-ना-तवाँ मेरी ये शौक़-ए-बे-अमाँ मेरा
तवानाई कफ़-ए-सैलाब में सद से ज़ियादा है