ये सहल ही सही सिक्के उछाल कर रखना
मगर ये दिल है उसे भी सँभाल कर रखना
नज़र से लाख हों ओझल सुराग़ मंज़िल के
जुनूँ का काम है सहरा खँगाल कर रखना
है इंक़लाब के शो'लों की गर्मियाँ इस में
मता-ए-लौह-ओ-क़लम को सँभाल कर रखना
नया ख़याल नई रौशनी नई राहें
सफ़र नया है क़दम देख-भाल कर रखना
जनाब-ए-'नूर' ग़ज़ल का यही तक़ाज़ा है
नए ख़याल को क़ालिब में ढाल कर रखना
ग़ज़ल
ये सहल ही सही सिक्के उछाल कर रखना
नूर मुनीरी