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ये सब कहने की बातें हैं हम उन को छोड़ बैठे हैं | शाही शायरी
ye sab kahne ki baaten hain hum un ko chhoD baiThe hain

ग़ज़ल

ये सब कहने की बातें हैं हम उन को छोड़ बैठे हैं

ज़हीर देहलवी

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ये सब कहने की बातें हैं हम उन को छोड़ बैठे हैं
जब आँखें चार होती हैं मुरव्वत आ ही जाती है

वो अपनी शोख़ियों से कोई अब तक बाज़ आते हैं
हमेशा कुछ न कुछ दिल में शरारत आ ही जाती है

न उलझो ताना-ए-दुश्मन पे ऐसा हो ही जाता है
जहाँ इख़्लास होता है शिकायत आ ही जाती है

लिया जब नाम उल्फ़त का बदल जाती है सीरत भी
निगाह-ए-शर्म-आगीं में शरारत आ ही जाती है

कभी चितवन से अन-बन है कभी सौदा है गेसू का
नसीबों की ये शामत है कि शामत आ ही जाती है

हमेशा अहद होते हैं नहीं मिलने के अब उन से
वो जब आ कर लिपटते हैं मोहब्बत आ ही जाती है

कहीं आराम से दो दिन फ़लक रहने नहीं देता
हमेशा इक न इक सर पर मुसीबत आ ही जाती है

हिसाब-ए-दोस्ताँ दर-ए-दिल तक़ाज़ा है मोहब्बत का
मसल मशहूर है उल्फ़त से उल्फ़त आ ही जाती है