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ये सानेहा भी हो गया है रस्ते में | शाही शायरी
ye saneha bhi ho gaya hai raste mein

ग़ज़ल

ये सानेहा भी हो गया है रस्ते में

अब्दुल वहाब सुख़न

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ये सानेहा भी हो गया है रस्ते में
जो रहनुमा था वही खो गया है रस्ते में

किसी भी आबला-पा को न मिल सकी तस्कीन
अजीब ख़ार कोई बो गया है रस्ते में

इ'ताब-ए-जाँ हुई गर्द-ए-सफ़र किसी के लिए
किसी को अब्र-ए-करम धो गया है रस्ते में

हुदी की लय करो मद्धम ऐ क़ाफ़िले वालो
थकन से चूर कोई सो गया है रस्ते में

मुसाफ़िरान-ए-वफ़ा की कोई ख़बर न मिली
न जाने कौन किधर को गया है रस्ते में

रहेगा साथ कहाँ तक ये देखना है मुझे
वो हम-सुख़न तो मिरा हो गया है रस्ते में