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ये रात कितनी भयानक है बाम-ओ-दर के लिए | शाही शायरी
ye raat kitni bhayanak hai baam-o-dar ke liye

ग़ज़ल

ये रात कितनी भयानक है बाम-ओ-दर के लिए

शातिर हकीमी

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ये रात कितनी भयानक है बाम-ओ-दर के लिए
कहाँ से लाऊँ सिराज-ए-मुनीर घर के लिए

तलब की राह सलामत मक़ाम-ए-शौक़ बहुत
तकल्लुफ़ात ज़रूरी नहीं सफ़र के लिए

जमाल-ए-यार सज़ा-वार-ए-जिहत-ए-ख़ास नहीं
अजीब मरहला दर-पेश है नज़र के लिए

ग़रीब-ए-शहर-ए-तमन्ना असीर-ए-दाम-ए-फ़िराक़
तड़प रहा है सर-ए-जादा हम-सफ़र के लिए

बसीरत-ए-लब-ओ-लहजा न ज़िंदगी का शुऊर
क़रार भी है ज़रूरी दिल ओ नज़र के लिए

नशात का रुख़-ए-रौशन दिखा गई शब-ए-ग़म
दुआ को हाथ उठाया था मैं सहर के लिए

फ़ुग़ाँ कि जिस ने ज़माने को रौशनी बख़्शी
चराग़ ढूँड रहा है ख़ुद अपने घर के लिए

हयात दफ़्तर-ए-तख़्लीक़ भी है ऐ 'शातिर'
हयात एक मुअम्मा भी है बशर के लिए