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ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी | शाही शायरी
ye nahin pahle teri yaad se nisbat kam thi

ग़ज़ल

ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी

इक़बाल अशहर

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ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी
माजरा ये था कि एहसास में शिद्दत कम थी

किस लिए छीन लिया तो ने ग़ज़ालों का सुकून
इस ख़राबे के लिए क्या मिरी वहशत कम थी

वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
यूँ भी दुनिया में कशिश तेरी ब-निसबत कम थी

तेरे किरदार को इतना तो शरफ़ हासिल है
तू नहीं था तो कहानी में हक़ीक़त कम थी

हम तो उस वक़्त भी रौशन थे किसी गोशे में
जब ज़माने को चराग़ों की ज़रूरत कम थी